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कविता

अमरकंटक

प्रेमशंकर शुक्ल


झर रहा है
धरती का सबसे प्राचीन
और मीठा जल

पास के हरे-भरे पेड़
पानीदार हैं
सुंदरता में बेजोड़

झुरमुट में चिड़ियाँ
गा रही हैं
नर्मदा का जन्म गीत
और यह क्रम
है लगातार

वत्सल-जल
एक महान नदी को
बनाए-बचाए रखने की ललक में
दिख रहा साफ

उत्कंठा से निकलती जा रही
            नर्मदा
                        आगे
                                    बहुत आगे...
 


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